करवटें सुनाती यह दास्तान अजीब
बचपन में जो लगती नींद वो नही
आसमानी रंगों सी थी यह सुबह
देखते ही देखते ना जाने क्या हुआ
यह जो एहसास था, नादानियाँ कहाँ
रास्ते गुज़रते, यह क्या हो गया
बेफिकर यह जहाँ, बेफिकर आसमान
ना पूछा किसी ने, यह क्या हो गया
दिल जो यह रोया समझा ना था
पहलू में चूपता दिल यह आवार
मनमर्ज़िया थी ख्वाहिश भरा
उड़े थे ख्वाब ऐसे काट ते अंधेरे जैसे
स्कूल के वो रास्ते, दोस्तों के पास थे
यादो की तितलियाँ यह उड़ती फिरती गिरती गाती
किससे और कहाँिया हुमको अब कहा सुनाती
क्यूँ वो बचपन चला किससे कहाँ
हम तुम जो ठहरे, यह क्या हो गया
बेफिकर यह जहाँ, बेफिकर आसमान
ना पूछा किसी ने, यह क्या हो गया
यह जो एहसास था, नादानियाँ कहा
रास्ते गुज़रते, यह क्या हो गया
बेफिकर यह जहाँ, बेफिकर आसमान
ना पूछा किसी ने, बचपन खो गया