मेरा कुच्छ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं
सावन के कुच्छ भीगे भीगे दिन रखे हैं
ओर मेरे इक खत में लिपटी रात पड़ी हे
वो रात बुझा दो, मेरा वो समान लौटा दो
वो रात भुझा दो,मेरा वो समान लौटा दो
हो, सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
और मेरे इक खत में लिपटी रा त पड़ी हे
वो रात बुझा दो, मेरा वो समान लौटा दो
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में इक बार पहन के लौटाई थी
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में इक बार पहन के लौटाई थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक काँप रही हैं
गीला मन शायद,बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो समान लौटा दो
गीला मन शायद,बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो समान लौटा दो
झूठ मुठ के वादे भी सब याद करा दूं