श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि
बरनऊं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार
कुमति निवार सुमति के संगी
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं
कबि कोबिद कहि सके कहां ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप