उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी |2|
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।