आ हाँ आ हाँ आ हाँ आ हाँ आ हाँ
बस्ती में कोई घर हो दुनिया का ना कोई डर हो
आ हाँ आ हाँ आ हाँ आ हाँ आ हाँ
महकी फ़िज़ाएं हो ठंडी हवाएँ हो
दिलबर की बाहों में दिलबर की बाहें हों
मस्ती लुटाएं निगाहें शराबी
गालों पे बिखरी लबों की गुलाबी
धरती हो ना अंबर हो नदियाँ हो ना सागर हो
क़ुदरत की हो दिलकश कोई रचना
यादों के मेले हों ख्वाबों के रेले हों
दिल की पनाहों में हम तुम अकेले हो
अपने ख्यालो की दुनिया बसाये
सारे ज़माने के गम को भुलाये
जन्नत से भी सुंदर हो सबसे हँसी मंज़र हो