करहु प्रणाम जोरी जुग पानी
सन्मुख होई जीव मोहि जबहीं,
जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति,
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा,
हरि व्यापक सर्वत्र समाना,
प्रेम ते प्रकट होहिं मैं जाना
बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा,
जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना,
जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना
कबि न होऊँ नहीं चतुर कहावऊँ,
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं,
होइहि सोइ जो राम रचि राखा,
सुमिर सुमिर नर उतरहि पारा