चेहरा है जैसे झील में हँसता हुआ कँवल
या ज़िन्दगी के साज़ पे छेड़ी हुई ग़ज़ल
जाने बहार तुम किसी शायर का ख्वाब हो
चौदवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो
जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो
चौदवीं का चाँद हो हूँ रु रु रु रु रु रु
होठों पे खेलती हैं तबस्सुम की बिजलियाँ
सजदे तुम्हारी राह में करती है कहकशां
दुनिया-ए-हुस्नो-इश्क का तुम ही शबाब हो
चौदवीं का चाँद हो या आफ़ताब हो
जो भी हो तुम खुदा कि क़सम, लाजवाब हो